V.S Awasthi

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जेठ की गरम दुपहरिया

प्रतियोगिता हेतु रचना 
जेठ की  गरम दुपहरिया
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जेठ दुपहरिया बहुत है गर्मी घर के बाहर तुम जाएव ना।
बैगन का भर्ता बनि जइहौ बिना अंगौछा जायेव ना।।
जूता कसि कै पहिन कै निकसेव तरवन मां रोटी बनि जइहैं।
गालन का तुम ढकि कै राखेव नहीं कचौड़ी बनि जइहैं।।
तरवन का जब बैठि कै देखिहव तौ तरवा  दिखिहैं चित्ती दार।
सिर पर जब हाथन का धरिहौ तो जरे महकिहैं काले बार।।
ज्यादा देर जो घूमेव बाहर तो चक्कर खा कै गिरि जइहौ।
उल्टी,टट्टी आवन लगिहैं
घर मा आकै फिर पछितइहौ।।
जेठ दुपहरिया बाहर निकसेव खोपड़ी मा अंगौछा कसि लीन्हेव।
आम पना मिल जाय कहूं तो दुई चार कुल्हड़ियां पी लीन्हेव।।
"पथिक" तुम्हें देत हैं सलाह तुम गांठि बांधि कै रखि लीन्हेव।
घर से जब बाहर निकसेव
पानी की बोतल भी लइ लीन्हेव।।
है जेठ दुपहरिया खतरनाक उल्टी टट्टी करवाय देत।
लापरवाही यदि करेव जरा तो मौत द्वार दिखवाय देत।।
इन सबसे अच्छी बात एक घर के अन्दर चुप्पैं बैठव।
बहुत जरूरी काम ना हो
घर से बाहर नाहीं निकसव।।
गर्मी के ई महिनन मा खाना कम पानी खूब पीयेव।
फुल बाहिंन के कपड़ा पहिनेव औ सिर मा अंगौछा बांधि लिहेव।।
संझा मा जब घर लौटेव रुकि कै थोड़ा सेतुवा खाएव।
भूंजि कै कच्ची अमियन का नमक, पुदीना संग पी डारेव।।
ऐसा करिहौ तो तन तुम्हार अन्दर तक ठंडाय जाई।
लूक धूप का असर जो है वो तुम्हरे तन पर नहीं आई।।
विद्या शंकर अवस्थी पथिक कानपुर

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1 Comments

Gunjan Kamal

03-Jun-2024 03:37 PM

👌🏻👏🏻

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